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बच्चों, किशोरावस्था के जीवन निर्माण मे माता-पिता की भूमिका : Bachcho Ke Jeevan Nirman Me Mata-Pita Ki Bhumika

किशोरावस्था जीवन का बहुत महत्तव मोड़ ( Important turn ) होता है । इस अवस्था में किशोर के अंदर शारीरिक विकास ( Physical development ) के साथ साथ मानसिक विकास ( Mental development ) तथा भावनाओं ( Emotions ) का आवेग चलता रहता है । इस आवेग को यदि सही दिशा न दिया गया तो समाज ( Society ) को हानि ही पहुंचाएगा । मानव जीवन ( Human life ) के निर्माण में इस अवस्था ( किशोरावस्था ) का बहुत महत्तव है । यदि इस अवस्था में लडके, लड़कियों ( Boyes, Girls ) को यदि सही दिशा मिल जाय तो उनका भविष्य उज्जवल ( Future bright ) हो सकता है । बचपना बीतते ही, समझदारी ( Rationality ) आने लगती है ।

बचपन में हुऐ घटनाओ ( Events ) ( डाँटने, मारने ) को आसानी से भुला देता है । जबकि किशोरावस्था इन घटनाओ को अधिक समय तक याद रखता है । इसी समय में ही किशोर, किशोरी जिन गुणों या दुर्गुणों ( Qualities or Badges ) को ग्रहण कर लेता है, उन्हें जल्दी नहीं छोड़ते है ।

किशोरावस्था में जिज्ञासा ( Curiosity ) बहुत तेज होती है इसी कारण से वे अच्छी – बुरी बातों की तरफ बहुत तेजी से आकर्षित ( Attract ) हो जाते हैं । इसी समय ही माता-पिता या अभिभावकों को किशोर के ऊपर दिशा एवं देख-रेख ( Supervision ) की बहुत महत्तव पूर्ण भूमिका ( Role ) होती है । किशोरावस्था ( Adolescence ) में भी उनके माता-पिता बच्चो जैसा व्यवहार करते हैं । जबकि इस समय अभिभावकों को उनके साथ अच्छे आचरण की कला, व्यवहार आदि सिखाने चाहिए ।

यदि आरम्भ से ही बच्चो के अंदर अच्छे संस्कार ( Good manners ) भर दे तो वे आगे चलकर अच्छे नागरिक बनेंगे । किशोर या कोशोरियाँ की बुद्धि परिपक्व ( Mature ) नहीं होती, इसलिए अपने भले-बुरे के बारे में निर्णय लेना उनके लिए संभव ( Possible ) नहीं होता। यदि इस समय, उनको स्वयं के निर्णय पर छोङ दिया जाय तो वे पतन की तरफ बढ़ाने लगते हैं अर्थात वह अपने चरित्र को नष्ट करना शुरू कर देता है । ( Starts destroying the character ) ऐसी स्थिति में माता-पिता या अभिभावकों को मर-पीट, डांट करके नहीं, बल्कि प्रेम पूर्वक ( Affectionately ) उनको समझा के सही दिशा (Right direction) देनी चाहियें ।

परिवार ( Family ) का लड़ाई-झगड़ा और माता-पिता का गलत आचरण ( Misprint ), बच्चे के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव ( Adverse effect ) पड़ता है, और उनके अंदर उदारता, सहयोग, सहनशीलता ( Generosity, Cooperation, Tolerance ) जैसे गुणों का हास्य होने लगता है । वही बच्चे आगे चल के उदंडित, कुसंस्कारी ( Profane, mischievous ) हो जाते हैं । इसलिए माता-पिता ( mother-father ) को उनके सर्वांगीण विकास ( All round development ) के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए ।

शिक्षा का मनुष्य जीवन में, बड़ी भूमिका होती हैं । ( Education has a big role in human life ) यदि बच्चो को, उनके वाल्यावस्था से ही शिक्षा के प्रति रुचि जाग्रत ( Interest awake ) हो गयी तो ऐसे बच्चे जीवन क्षेत्र में हमेशा सफलता प्राप्त करते रहेंगे । शिक्षा के साथ – साथ बच्चों को, नैतिक शिक्षा ( Moral education ) पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है । इसके अतिरिक्त धार्मिक शिक्षा ( religious education ) का पाठ पढ़ाने की आवश्कता होती है, इससे उनके अंदर आत्मीयता , श्रमशीलता, उदारता, छमा, दया, त्याग, व्यवस्था ( Intimacy , Laboriousness , Generosity , Shadow , Mercy , Sacrifice , the arrangement ) , भगवान में विश्वास आदि जैसे सद्गुणों ( Virtues ) समावेश होना चाहिए । सामाजिक कार्यो के लिए भी बच्चों को प्रेरित ( Induced ) करना चाहिए ।

आज कल ( Now-a-days ) यह देखा गया है कि माता-पिता या अभिभावक बच्चों को काम नहीं देते कि इस काम को नहीं कर पाएंगे । जबकि इस अवस्था में उनके अंदर कुछ नई सीखने ( New learning ) कि बहुत इक्छा होती है । खाली समय में उनका मन इधर-उधर कि बातों या गलत संगति ( Wrong association ) में पड़ने लगता है और यही आज कल किशोर अपराधियों ( Criminals )कि वृद्धि का एक कारण है। यदि उनसे सही समय पर सही कार्य नहीं कराया गया तो वे –

” खाली दिमाग शैतान का घर “

वाली उक्ति, उनके ऊपर हावी हो जाता है और वे अपराधिक श्रेणी में आ जाते हैं । इसलिए माता-पिता या अभिभावक को चाहिए कि बच्चों के इस निर्माण के लिए परिवार का वातावरण ( Family atmosphere ) सही बनाये रखें, जिससे उनके ऊपर गलत प्रभाव ( Wrong effect ) न पड़े और वे सही दिशा में अग्रसर रहें । ( Keep moving in the right direction )
ऐसी स्थिति में माता-पिता या अभिभावकों को मार-पीट, डांट करके नहीं बल्कि प्रेम पूर्वक ( Affectionately ) उनको समझा के सही दिशा देनी चाहियें ।

– © Ashok Maurya –