छन्द हिन्दी में : Chhand in Hindi

Kavita hindi

– © के० सी० ‘रसिक’-

वासना के वशीभूत जग के समस्त भूत,
सब जीव जन्तु को नचा रही है वासना ।
काम क्रोध मद लोभ मोह को बढा़ रही है,
शान्ति सद्भावना मिटा रही है वासना ।
लगता है जैसे वासना कभी मिटेगी नहीं,
इस भाँति उधम मचा रही है वासना ।
वसना का अन्त नहीं वासना अनन्त नहीं,
बन्धु देशबन्धु की अनन्त की है वासना ।

– © योगी देशबन्धु –

मानव – मनो में दानवों के अनुहार देख,
दुनिया की सारी मनुहार छूटती गयी ।
मेरे लिए रहा सदा पतझार ही परन्तु ,
एक ओर दुनिया बहार लूटती गयी ।
नीति – अनुरक्ति, बीन वाहिनी की शक्ति ,
ईश भक्ति के भरोसे बिष घूँट घूंटती गयी ।
हुआ न निराश कभी, किन्तु जिन्दगी की रात ,
जोड़ा एक हाथ, चार हाथ टूटती गयी ।
बार-बार शीश हूँ नवाता आज कौशल को,
कौशल के प्रिय प्रणवीर को नमन है ।
करता नमन शुचि सरयू तटों को,
और सरयू-सुधा सदृश नीर को नमन है ।

– © गोमती प्रसाद मिश्र ‘अनिल’ –

जिससे मन-प्राण को प्राण मिले,
वह शीतल मन्द बयार बनो ।
हृदयांगन भीग उठे बन कोमल,
ऐसी अनूठी फुहार बनो ।
झनकार बनो अपनों के लिए,
अरियों को दुधारी कटार बनो ।
यदि संकट में हो मनुष्यता, ‘सत्य’
पयोधि में आ पतवार बनो ।

– © सत्यव्रत मिश्र ‘सत्य’ –