:: वाणी हो मधुर मेरी, सहज स्वभाव हो ::
जिसने भी किया कुछ भी हमारे हित हेतु,
उसके लिए सदा कृतज्ञता का भाव हो।
शुचि सौभ्यता हमारे देश भारत की-
है महान, इससे सदैव ही लगाव हो।
चाहता है मन गतिमय रहे जीवन ये,
कभी भी न सफर में कोई ठहराव हो।
राम! आपकी कृपा सदैव बनी रहे ताकि,
वाणी हो मधुर मेरी, सहज स्वभाव हो।। – © अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ –
:: कविता – Kavita ::
जब उसकी देहरी पर गाती शाम ढले शहनाई है,
तब मेरे मन की बगिया की एक कली मुरझाई है ।
घर-आँगन से खुशियां उजड़ी, चंचलता भी शान्त हुई ।
उसके गए सलोनी रजनी, शोकाकुल, आक्रान्त हुई । जर्जर तन सा हुआ पवन वह कहाँ गयी तरुणाई है ?
आज चाँद भी तनिक लजाया और सकुचाया सा आया ।
होकर द्रवित ढूंढता जैसे, अपना रूप, विम्ब, साया । ‘सत्य’ हुआ क्या तुझे आज क्यों पसरी ये तन्हाई है ?
जीवन अपनों के बिन कैसा ? सपनों का संसार चला ।
प्रियतम की यादों में मन का, छोड़ पखेरू द्वार चला । स्वप्न मरे अन्तस् के सारे बिलख उठी अंगनाई है ।
:: हिन्दी मुक्तक – Hindi Muktak ::
गणवेश नहीं, आयुध न रहे, रण-स्यन्दन भी कब के न रहे,
उन्मूलन-काल महीपों का, गज, बाजि शेष अब कुछ न रहे ।
यदि शेष रहा कुछ तो चौसर,महफ़िलें सुरा-सुंदरियों की,
हे पूर्व क्षत्रपों ! अब सँभलो जाने सरिता किस ओर बहे ! Click here to read more… और पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें – © सत्यव्रत मिश्र ‘सत्य’ – |