:: पहचान ::
माँ निहारती है बेटियों में अपना स्वरूप,
पिता के ह्रदय का गुमान का गुमान रहीं बेंटीयाँ ।
संस्कृति व शील रही जिनकी है पहचान,
अपने सभी जनों की जान रहीं बेटीयाँ ।
खुद की फिकर करतीं न, फर्ज को निभातीं,
हिन्दुस्तान का हैं स्वाभिमान रहीं बेटीयाँ ।
नित्य नये कीर्तिमान गढ़ती रहीं तभी तो,
भारत की आन-बान-शान रहीं बेटीयाँ ।।
:: वह माँ ही है ::
जीवन को डाल संकटो में जो प्रदान करे,
जीवन मनोरम सुतों को, वह माँ ही है ।
जीवन में दुख की जो स्याह रात आती कभी,
भोर की उजास शुभ्र दिखे, वह माँ ही है ।
चिन्तित हो करती प्रयास रहती है नित्य,
रौशन हो कैसे घर बार, वह माँ ही है ।
माँ का उपमान कोई मिलता न, निविरकल्प,
माँ को क्या कहेंगे भला, वह माँ ही है ।। सच्ची बातें – Sachi Baatein… क्लिक करें – © अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ – |