इस पृथ्वी पर मनुष्य को सबसे बुद्धिमान प्राणी या जीव ( Intelligent creature ) माना जाता है और यह सत्य ( Truth ) भी है । हमारा उस परमात्मा को कोटि-कोटि प्रणाम है जिसनें हम लोगों को मानव शरीर प्रदान किया है|
” बड़े भाग्य मानुष तन पावा “
अर्थात हमें बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त हुआ है |
मन तथा आत्मा ( Soul ) दोनों मानव शरीर में ही निवास करते हैं, लेकिन साधारण मनुष्य ( Ordinary human ) के शरीर में मन और आत्मा दोनों विपरीत ( Adverse ) काम करते है मन कुछ और कहता है व आत्मा कुछ और। अर्थात मन और आत्मा का एक दूसरे से सामन्जस्य नहीं हो पाता है । यदि मानव शरीर में मन और आत्मा का सामन्जस्य हो जाएँ तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा और आन्तरिक शक्तियों को प्राप्त कर सकते है ।
मन का अर्थ है मनुष्य के विचार |
सोच ( Thought ), एक ऐसी शक्ति ( Power ) है जो पानी के बुलबुले की तरह बनता – बिगङता रहता है, जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, बाहरी दिखावा, अहंकार ( Proud ) आदि, मन के विभिन्न सोचो के प्रतिस्वरूप हैं |
उदाहरण के लिए यदि हम चोरी करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने अंदर विचार बनाते है क़ि चोरी कैसे करना है, कैसे पकड़े जाने से बचना हैं इत्यादि अर्थात कोई कार्य करने से पहले हमारे अंदर जहां ये बिचार उत्पन्न ( Create ) होते हैं उसी को मन कहते हैं ।
मन, सकारात्मक ( Positive ) और नकारात्मक ( Negative ) दोनों हो सकते हैं और हम ये भी सोचते हैं क़ि पकड़े गये तो हमारा क्या होगा, तथा मुझे पहले से ज्ञात हैं क़ि चोरी करना पाप ( Sins) हैं या गलत हैं इसी को आत्मा की संज्ञा दी जाती हैं या दूसरे शब्दों में कहे तो मन का वो हिस्सा ( Part ) जो सही या गलत के प्रति हमें चेतना देता है ।
अर्थात आत्मा का दूसरा नाम परमात्मा भी कहा जाता हैं, जिसका कोई नाम, रूप, रंग, आकार, अंत ( Name, Look, Color, Shape, End ) नहीं होता है ।
आत्मा शरीर के अंदर सबसे पवित्र ( The holy) होता हैं, अर्थात परमात्मा ने प्रत्येक प्राणी के अंदर एक जैसी आत्मा दी, चाहे वह चींटी हो या हाथी, छोटे प्राणी से लेकर बड़े प्राणी क्यों न हो और वह किस पर्यावरण ( Environment ) में जीने के लिए अनुकूल ( Favorable ) है इस पर निर्भर ( Dependent ) नहीं करता है।
भगवान कृष्ण ने, गीता में अर्जुन को उपदेश दिये थे क़ि –
न जायते म्रियते वा कदाचि-न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
– यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्म लेता है और न मरता है और न ही जन्म लेगा, यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जा सकता है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
– जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नए वस्त्रों को धारण करता है ( Holds new clothes ), उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग ( Sacrificing bodies ) कर नये शरीरों को धारण करता है।
जरा विचार कीजिये यदि मन और आत्मा में सामन्जस्य ( Harmony ) हो जाय तो क्या होगा ?
यदि कोई मनुष्य मन और आत्मा में सामन्जस्य स्थापित ( Established ) कर ले या मन और आत्मा दोनों एक हो जाये तो उसका जन्म ( Birth ) तथा जीवन ( Life ), धन्य ( Blessed ) हो जायेगा और वह जीवन मरण के बारे में नहीं सोचेगा, तथा ईश्वर को प्राप्त कर लेगा ।
मन और आत्मा में सामन्जस्य स्थापित करने के उपाय ( Measures for harmonizing mind and spirit ) : –
क्या आप ने कभी सोचा क़ि टीवी, रेडियो, मोबाइल आदि इलेक्ट्रॉनिक मशीन ( Electronic machine ) कैसे काम करते है, आइये हम आप को विज्ञान ( Science ) की भाषा ( Language ) में एक उदाहरण ( An example ) देकर समझाने की कोशिश ( Try to explain ) करते हैं | आप लोगो को पता ही होगा कि टीवी या मोबाइल ( Mobile ) को चलाने के लिए बहुत सारी तकनीक ( Technique ) की जरूरत ( Need ) होती है | एक तो वह जो सिग्नल या ऊर्जा ( Signal or Energy ) भेज रहा है और दूसरा वह जो सिग्नल या ऊर्जा ले रहा है इसके बीच में एक कड़ी होती है जिसे हम माध्यम ( Medium ) कहते हैं ।
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हमारे चारो ओर ( Around us ) बहुत प्रकार कि ऊर्जा होती है लेकिन हम उस ऊर्जा को ले नहीं पाते क्योकि हमें जिस तरह की ऊर्जा को लेना हैं उसी तरह का यन्त्र ( The machine ) भी होना चाहिए।
ठीक उसी प्रकार हमारा यह शरीर भी एक प्रकार की मशीन है ( Similarly our body is also a type of machine ) जो पांच तत्वों ( Five elements ) से मिलकर बना है –
” पंच तत्वों से बना शरीरा छिति, जल, पावक, गगन, समीरा “
अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश। ( Earth, Water, Fire, Air, and Sky ) इनमें से किसी भी तत्व ( Element ) की मात्रा कम या अधिक ( Quantity less or more ) हो जाने पर हमारा शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है ( Our body suffers from diseases ), इसलिए इन पांचो तत्वों को बराबर रखने के लिए भोजन, प्राणायाम और योग की जरूरत होती है ( Food, Pranayama and Yoga are needed ) ।
ठीक उसी प्रकार मन और मष्तिष्क ( Mind and mind ) को सही बनाये रखने के लिए मन और आत्मा में सामन्जस्य स्थापित करने के लिए विचारो को सकारात्मक ( Affirmative ) रखनी होगी और हमेशा मन और आत्मा दोनों को साथ लेकर आत्मिक शक्तियो ( Spiritual powers ) में विश्वास के साथ हर कदम को आगे बढ़ाना होगा ।
यही मन और आत्मा का सार ( Abstract ) है।
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Man Aur Aatma Me Sambandh
– © Ashok Maurya –