Desh Bhakti Kavitayen
Desh Bhakti Kavita in Hindi : देश भक्ति कविताएँ हिन्दी में

 

जिंये इस भाँति शक्ति देना इतनी कि राम,
जन्मभूमि के सतत मान के लिए जियें।
मान के लिए जियें पियें समाज का गरल,
भारत की अस्मिता व शान के लिए जिंये।
शान के लिए जियें सदैव शान्त जीवन हो,
जीवन में जीवन की आन के लिए जियें।
आन के लिए जियें अनेकता में एकता का,
मंत्र फूँक भारत महान के लिए जियें।।

:: Desh Bhakti Kavita – 2 ::

स्वामी श्री विवेकानन्द हुए सिद्ध श्रेष्ठ सन्त,
याद करे दुनिया सदैव वो जनम हो ।
जीवन जियें कि लोग प्रेरणा ग्रहण करें,
धर्म कर्म ध्यान में बसा सदा वतन हो ।
विश्व को समझकर जीवन का रंगमंच,
रंगमंचकार का स्मरण प्रतिक्षण हो ।
जिसने किया है कुछ भी हमारे हित हेतु,
उसके लिए सदैव मन में नमन हो ।।
:: Desh Bhakti Kavita – 3 ::
निज इष्ट का पवित्र हृदय सिंहासन हो,
ध्यान बस उसी का रहे वो मन चाहिए ।
पाहन की प्रतिमा भी प्राणवान होती, और-
बोलती है, भक्त का भी भक्ति धन चाहिए ।
निराकार का प्रथम चरण ही है साकार,
उर में अपूर्व श्रद्धा औ नमन चाहिए ।
साधना अडिग रहे डिगने न दे कदापि,
रामकृष्ण दयानन्द सी लगन चाहिए ।।

:: Desh Bhakti Kavita – 4 ::

चलो आओ सखे मिल बैठ कहीं,
हम राष्ट्र के तत्व की बात करें।
चलो आओ सखे मिलके सब,
भारत माँ के ममत्व की बात करें।
परमार्थ में पीते हलालल जो,
शिव जी के शिवत्व की बात करें।
चलो आओ सखे पल दो पल को,
मिले के अपनत्व की बात करें।।
:: Desh Bhakti Kavita – 5 ::
विश्व गुरु था कभी हमारा देश भारत ये,
पर अब देश में वो दिव्यता नहीं रही।
सत्य, धर्म, साहस ही ध्येय जिनका था, कभी
उनके ही वंशजों में सत्यता नहीं रही।
प्रकृति श्रृंगार देख, देव तक रीझते थे,
जलते हैं उपवन, रम्यता नहीं रही।
पश्चिम की संस्कृति का भूत है सवार आज,
खो गये सदाचरण सभ्यता नहीं रही।।
:: Desh Bhakti Kavita – 6 ::
करती नहीं है भेद, अटक हो या कटक
जैसे केरला उसी तरह काश्मीर है।
नदियाँ भी करती हैं भेद रंच मात्र,
गंगा जल जैसा ही वितसता का नीर है।
सवार्थवाद हावी हुआ आज राजनीति पर,
अलगाव वाली नेताओं की तहरीर है।
देख अपने ही बेटों मध्य मचा घमासान,
भारत जननि के हृदय बड़ी पीर है।।

 

– © अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ –