कृष्ण की प्रेम दीवानी मीरा – Krishna Ki Prem Divani Meera

कृष्ण की प्रेम दीवानी मीरा – Krishna Ki Prem Divani Meera

Meera Ki Krishna Bhakti Anmol Gyan Indiaआनन्दमय जीवन की कला

मीरा की भक्ति : Meera ki Bhakti

:: Krishna Ki Divani Meera ::

मीरा ने देखा जो मोहन रूप तो
देख के श्याम को बावरी हो गयी।।

श्याम नहीं मिलते तो घड़ी वह है,
दिन रैन से भी बड़ी हो गयी।

छोड़े जो राणा के राजसी ठाट तो,
वो महारानी से भी बड़ी हो गयी।

श्याम ही श्याम पुकार फिरी जब-
श्याम मिले वह श्याम की हो गयी।।

:: श्याम ही श्याम ::

राज घराने को त्याग के,
संत समाज के बीच सुहायी थी मीरा।

लोक के जो अपने थे, सभी,
अपने तज के चली आयी थी मीरा।

है पड़ी श्याम सलोने के प्रेम में
बोलने में न लजायी थी मीरा।

श्याम ही श्याम, श्री कृष्ण श्री कृष्ण,
श्री कृष्ण में अंत समायी थी मीरा।।

:: मीरा की भक्ति भावना ::

मीरा में भक्ति या भक्ति में मीरा
समायी न भेद ये जान सका जग।
देखा कभी भी न लौट के राजघराना,
जो छोड़ बढ़ा दिये थे पग।
हारी नहीं, पछतायी कभी नहीं,
था तो बड़ी कठिनाई भरा मग।
श्याम हैं साथ निबाहने वाले तो
हैं जगती के ये लोग महाठग।।

:: मीरा से सीखो ::

सीखना हो यदि त्याग का पाठ तो,
ध्यान विराग ये मीरा से सीखो।
छोड़ के राजघराने का वैभव,
माना सुभाग ये मीरा से सीखो।
विश्व से या मनमोहन से,
करना अनुराग है मीरा से सीखो।
इष्ट के खातिर अन्तस में,
कितनी भरी आग हो, मीरा से सीखो।।

:: नँदगाँव के वासी ::

हरिकृष्ण के संग रहें निशिवासर, प्रेंम के ही उपवासी बनें।
ब्रजमण्डल के प्रभु श्याम सखाओं, सरीखा सदा मृदुभाषी बनें।
यह चाह सदैव बसी मन में हम, भी नँदगाँव के वासी बनें।
न मिले सुख वैभव किन्तु सदा, हम भी ब्रजभूमि निवासी बनें।।
Krishna Ki Divani Meera

– ©अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ –

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