Bharat ki Sanskriti par Kavita : भारत की संस्कृति पर कविता
:: विश्वगुरु के लाल, भूलते अपनी संस्कृति ::संस्कृति अपनी भूलते , पछुआ बहे बयार ।
आप समझते जीत है , मैं समझूंगा हार ।। मैं समझूंगा हार , हार ये काँटों का है ।
भान नही जलियांवाला आघातों का है ।। गोरों का आतंक याद कर ,हो क्यों विस्मृति ।
विश्वगुरु के लाल , भूलते अपनी संस्कृति ।। विश्व भर में हो जयघोष भारतीयता का,
सभ्यता व शील का वितान ये तना रहे एक दूसरे में सदा एक दूसरे के प्रति,
प्रेम और मित्रता का भाव भी बना घना रहे। विश्व भर में हो जयघोष भारतीयता का,
सभ्यता व शील का वितान ये तना रहे एक दूसरे में सदा एक दूसरे के प्रति,
प्रेम और मित्रता का भाव भी बना घना रहे। अग्रसर हों सदेवा लोकहित के लिए कि,
हिन्दवासियों का मन भी महामना रहे। देख पर जब कभी विघ्न आदि आएं तब,
कृपा करना हे अम्ब! गौरव बना रहे।। :: प्रभु राम ::
प्रभु राम भारतीय संस्कृति के हैं सुमेरु,
प्रेम का सुपाठ ही पढ़ाया प्रभु राम ने। निजता व स्वार्थपरता से दूर परमार्थ,
में है निज जीवन रमाया प्रभु राम ने। केवट, जटायु, शबरी हों या कि हों निषाद,
सभी को हृदय से लगाया प्रभु राम ने। भुज को उठा, प्रतिज्ञा की थी जो अरण्य मध्य,
उसे पूर्ण करके दिखाया प्रभु राम ने।। – अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ – |