Jaisa khaye Ann waisa hoga Man
Jaisa khaye Ann waisa hoga Man : जैसा खाएंगे अन्‍न वैसा रहेगा मन

जिस प्रकार से मशीन या यंत्र को चलाने के लिए तेल या ईधन की जरूरत होती है । उसी प्रकार से मनुष्य को जीवित रहने के लिए अन्न या ऊर्जा की आवश्यकता होती है । मनुष्य का कर्म, गुण, स्वभाव का मूलभूत ढाँचा आहार के आधार पर ही बनता है । ( The basic structure of man’s deeds, qualities, nature, is made only on the basis of diet.) अध्यात्म विज्ञान में भोजन या आहार की उत्कृष्टता को अंतःकरण, कायकलेवर की पवित्रत, प्रखरता का उत्तम मधायम माना गया है । भोजन या आहार के आधार पर मन की शुद्धता और उसका स्तर निर्भर करता है । ( Based on food or diet, the purity of the mind and its level depends. ) खान – पान जितना आच्छा होगा, मन उसी अनुपात से निर्मल बनता चला जाएगा । एक कहावत आपने सुना ही होगा कि –

” जैसा खाये अन्न वैसा बने मन ” 

तामसिक और राजसिक भोजन या आहार करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर बल्कि मानसिक स्तर पर बड़ा प्रभाव पड़ता है । ( Tamasic and Rajasic food or diet does not only have a major effect on physical health but also on mental level. ) आहार के अनुरूप मानसिक स्थिति या कुंठित या कुविचार उठते है, उत्तेजनाएं , चिंता , आवेश ( Stimuli, anxiety, passion ) का दौर बना रहता है ऐसी स्थिति में न तो मन एकाग्रचित हो पाता है और न ही इंद्रियाँ बस में रहती हैं अर्थात मन की चंचलता बनी रहती है । ऐसी स्थिति मे आपको सर्वप्रथम आहार या भोजन की सात्त्विकता पर ध्यान देना चाहिये । ( In such a situation, you should first consider the sattvikta of food or food. )

मन को 11-वी इंद्रिय माना गया है । मन भी शरीर का एक भाग है । (The mind is also a part of the body.) अन्न से रस, रस से मांस, मज्जा, वीर्य आदि बनता है और अंत में मन बनता है । मनोवैज्ञानिक मत के अनुसार आहार के द्वारा मन का स्तर बनता है । ( According to psychological opinion, the level of the mind is formed by food. )

कैसी विचित्र बात है कि मन के द्वारा शरीर को चित्र-विचित्र काम करने पड़ते हैं । और यह भी कहा गया है कि मन का स्तर शरीर द्वारा बनता है । दोनों की विषमता होने के कारण वह मर भी जाता है । ऐसी स्थिति को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि मन प्रधान है या शरीर । लेकिन प्रत्यक्ष रूप से जीवन का आधार भोजन या आहार माना गया है ( Directly life is considered food or food ) , क्योकि आहार के अनुसार शरीर बनता एवं बड़ता है ।

इन सब बातों पर विचार करके ऋषि-मुनियों ने साधको को सतोगुणी भोजन अपनाने या खाने पर ज़ोर दिया है । निश्चित रूप से साधना कि सफलता के लिए, आहार कि सात्विकता जरूरी है । ( Certainly for the success of sadhana, that diet is essential to attain success. ) नशीला पदार्थ, मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, उत्तेजक मसाले, तमोगुणी तथा गलत तरीके से कमाया गया धन ( Inferior substance, meat, alcohol, onions, garlic, stimulants, spices, and misappropriated wealth ) आदि का आहार सर्वदा त्याज्य है, और इसी के आधार पर आपके साधना के मार्ग में सफलता मिलना संभव होगा ।

अतः जब आपका आहार शुद्ध होगा तब आपका अंतःकरण भी शुद्ध होगा अर्थात मन या चित्त शुद्ध हो जाएगा । ( Therefore, when your diet is pure, then your heart will also be pure, that means the mind or the mind will become pure. ) वाल्मीकीय जी ने रामायण में अंतःकरण को देवता की संज्ञा दिया है –
” यदन्न्त पुरुषों भवति तदन्नास्तस्य देवता : “

इस प्रकार से साधको को आहार या भोजन कि शुध्ता के साथ – साथ संयम, ब्रत, उपवास एवं ब्रह्मचर्य आदि से अपने शरीर और मन की शक्तियों को जाग्रत करे, जो सिद्धि प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है । ( In this way, the seekers should awaken the powers of their body and mind from food, food or purification, as well as abstinence, energy, fasting and Brahmacharya, which is very necessary to achieve accomplishment. )

जैसा खाये अन्न वैसा बने मन
आनंदमय जीवन की कला

– Ashok M. (IT), Delhi –

Man aur Atma mein Kya Antar Hai ? – मन और आत्मा में क्या अंतर है ?