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Samkaleen Dohe in Hindi : समकालीन दोहे हिंदी में

:: Hindi Doha 1 ::
जहर बुझे संवाद हैं कुंठित कुंठित मौन ।
यक्षप्रश्न हैं अनगिनत बने युधिष्ठिर कौन ।।
मानसरोवर में करें कौवे करुण किलोल ।
पशुता दरवाजे खड़ी बजा रही है ढोल ।।
कुटिल हृदय मानस विकृत गीधदृष्टि वकध्यान ।
बैठे हैं हर डाल पर उल्लू सीना तान ।।
हमने देखे हैं बहुत बड़े बड़े विद्वान ।
चालाकी में काटते लोमड़ियों के कान ।।
वैचारिक असहिष्णुता हुई कोढ़ में खाज ।
दिन दिन बढ़ता जा रहा विषवामिनी समाज ।।
बस्ती बस्ती वेदना पनघट पनघट प्यास ।
देख देख युग का चलन मन हो गया उदास ।।
किसको सहयात्री चुनें किसे बनाएँ के मीत ।
दुनिया भयवश चल रही मानवता भयभीत ।।
 

:: Hindi Doha 2 ::

जोड़ रहा है हाथ कारवाँ ।
छोड़ रहा है साथ कारवाँ ।
पथ से जो अनभिज्ञ स्वयं ही ।
चलता उनके साथ कारवाँ ।
नन्दन की कोमल कलियों को ।
बना रहा फौलाद कारवाँ ।
मन की बात करे कोई तो ।
करता है प्रतिवाद कारवाँ ।
अपनी अपनी तान छेड़कर ।
करता व्यर्थ विवाद कारवाँ ।
चारों तरफ वर्जनायें हैं ।
फिर भी है आजाद कारवाँ ।
 

– © योगी देशबन्धु –

Samkaleen Dohe in Hindi