Ekapad Rajakapotasana Vidhi aur Labh

Ekapad Rajakapotasana Vidhi aur Labh : एकपाद राजकपोतासन विधि और लाभ

 

परिचय –

एकपाद का अर्थ होता है एक पैर और राजकपोत कहते हैं कबूतरों के राजा को। इस आसन की पूर्णस्थिति में साधक का एक पैर पीछे होता है तथा उसका सीना कबूतरों की भांति बाहर निकलता है इसीलिए इसे एकपाद राजकपोत आसन कहा जाता है।

लाभ –

इस आसन में उदर की मासपेशियाँ भीतर की ओर खिंचती हैं, फेफड़े पूरी तरह से बाहर की ओर फैलते हैं तथा मेरुदंड को पीछे की ओर झुकाया जाता है। कंधा, कमर, जाँघ और पैरों की मांसपेशियों में भी पर्याप्त खिंचाव आता है। इससे कमर और कंधे स्वस्थ होते हैं, कमर के आसपास की वसा दूर होती है, आकर्षक, लचीली और पतली कमर का निर्माण होता है। जाँघों की मांसपेशियाँ स्वस्थ होती हैं, कुल्हे के जोड़ लचीले व मजबूत होते हैं, कूल्हों का आकार ठीक होता है और वे आकर्षक तथा सुन्दर दिखते हैं।

इस आसन से पाचन तंत्र तथा श्वसन तंत्र शक्तिशाली होते हैं, जिसके कारण यह अनेक प्रकार के उदर विकार व श्वास रोगों की चिकित्सा में लाभकारी है। इससे नाभि के आसपास वसा का घनत्व कम होता है तथा मूत्रवाही और प्रजनन संस्थान सशक्त होता है। थायरायड, पैराथायराइड, एड्रीनल गोनाड्स ग्रंथियों रक्त की अच्छी आपूर्ति होने के कारण उनकी कार्यक्षमता और जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है। इस आसन के नियमित अभ्यास से काम वासना नियंत्रित होती है तथा आत्मबल और संकल्प शक्ति का विकास होता है।

सावधानी –

हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, आँतो के गंभीर संक्रमण या किसी प्रकार की सर्जरी, स्लिपडिस्क, तंत्रिका तंत्र के विकार, तथा कंधो और घुटनों से जुड़े किसी जटिलता की स्थिति में इस आसन का अभ्यास न करें। सामान्य स्थिति में भी उच्च समूह के आसनों का अभ्यास करने के लिए किसी अनुभवी योगाचार्य का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन आवश्यक होता है।

आलोक –

एकपाद राजकपोतासन की गणना उच्च आसन समूह में की जाती है। इसके लिए अच्छी पूर्व तैयारी की आवश्यकता होती है। इसका अभ्यास करने के पहले सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, उष्ट्रासन, पश्चिमोत्तानासन व चक्रासन जैसे आसनों का अभ्यास पर्याप्त कर लेना चाहिए।

वीडियो (YouTube) देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

– @ आचार्य बी एस ‘योगी’ –