Best Ghazal in Hindi

Best Ghazal in Hindi : बेस्ट ग़ज़ल हिन्दी में

1 – ग़ज़ल

चलो हर गली एक मंदिर बना दें, ख़ुदा का बसेरा हो’ मस्ज़िद बना दें ।
उठीं जो दिवारें जहाँ मज़हबों की, चलो आओ’ मिलकर उन्हें हम गिरा दें ।
कभी जान लें हम मज़बूरियों को, जले झोपड़ों को फिर से सज़ा दें ।
अभी हाल में जो मरा भूख सहकर, उसे एक बढ़िया कफ़न ही’ दिला दें ।
रहे अब न ‘अंजान’ बेबस वतन में, सभी दूरियों को चलो हम मिटा दें ।

2 – ग़ज़ल

ये जीवन यूँ ग़ुजरता है, नशा जैसे उतरता है ।
हमारा हुस्न अब हमसे,सँवारे ना सँवरता है ।
नशीली आँख का जादू, रसीले होंठ बेक़ाबू,
पड़े ख़ाली हैं’ पैमाने,भरे से अब न भरता है ।
ज़रूरत अब नहीं आती, नक़ाबों की हिज़ाबों की,
न कोई अब रहे घायल, न कोई अब यूँ’ मरता है ।
कभी क़ीमत रही जिनकी, झलक मिल जाए’ कब उनकी,
तरसते थे जो’ दीवाने, न अब कोई तरसता है ।
बड़े दीदार करते थे, बरसते नोट रहते थे,
पड़े ‘अंजान’ कोने में, ख़बर कोई न करता है ।

3 – ग़ज़ल

दरिन्दों से परिन्दों को, बचाना भी ज़रूरी है,
ग़ुलिश्तां में नये पौधे, लगाना भी ज़रूरी है ।
दिखे मंज़र भयानक ही, लगे अब आइना झूठा,
लुटेरों के नक़ाबों को , हटाना भी ज़रूरी है ।
दरख़्तों की घनी छाया, पथिक आराम हैं करते,
पसीने की सज़ी बूँदें, सुखाना भी ज़रूरी है ।
मिले दो जून की रोटी, न कोई आबरू बेचे,
हक़ीकत हो यही सपना, दिखाना भी ज़रूरी है ।
कभी ‘अंजान’ राहों में, चलो तुम सावधानी से,
कुएँ गहरे बड़ी खाई, बचाना भी ज़रूरी है,

4 – ग़ज़ल

लिखो तो गीत कोई एक ग़ज़ल ही लिख दो,
दिलों की पीर नयन को सजल ही लिख दो ।
ग़रीबों के वो सितारे चमकते झोपड़ियों में,
तरसते नींद को ऊँचे महल ही लिख दो ।
जवां दिलों की धड़कने अँधेरे क़मरों में,
किसी के पाँव-आहटें टहल ही लिख दो ।
जो कर सके न मुहब्बत कभी ज़माने में,
नाक़ामयाबी की इक पहल ही लिख दो ।
तुम्हारे दर्द में ‘अंजान’ की तड़प या फिर,
हक़ीकतों की असल या नक़ल ही लिख दो ।

5 – ग़ज़ल

हमारी प्रेरणा बनकर हमें ज़िंदा किया तुमने,
बड़ा अहसान है मुझ पर चलो अच्छा किया तुमने ।
तरसते ही रहे हम तो नज़र भर प्यार को देखो,
ख़ुशी से मर न जाऊँ मैं मुझे इतना किया तुमने ।
बना देवी बसा दिल में करूँ पूजा उमर सारी,
कभी भी भूल से देखो नहीं शिक़वा किया तुमने ।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये हमारे दिल रहे छाए,
लगे सर को इबादत में झुका सज़दा किया तुमने ।
सज़ा दूँ माँग तेरी मैं तुझे दुल्हन बना दूँ मैं,
रहूँ ‘अंजान’ की होकर यही वादा किया तुमने ।
 

6 – ग़ज़ल

ऐसी कोई लहर नहीं जो गिरती-उठती न हो,
तूफानों से उलझ-सुलझकर आगे बढ़ती न हो ।
साजन सोने चले गये हैं सौतन की बाँहों में,
चट्टानों सी खड़ी मुसीबत जीवन की राहों में ।
ऐसी कोई निशा नहीं जो रोकर कटती न हो,
तूफानों से उलझ-सुलझकर आगे बढ़ती न हो ।
काली रातें कभी-कभी फिर अँधियारों में घेरें,
मीठा यादें जभी-तभी आकर अंदर से टेरें ।
ऐसी कोई दिशा नहीं जो आहें भरती न हो,
तूफानों से उलझ-सुलझकर आगे बढ़ती न हो ।
 
7 – ग़ज़ल
अज़ब इंसाफ़ क़ुदरत का, बने हम दो किनारे हैं,
इधर हम हैं उधर तुम हो, नदी अश्क़ों के’ धारे हैं ।
इबादत में झुके हम हुस्न की रोया जहां छोड़ा ।
गया ले चाँद कोई हाथ में जलते सितारे हैं ।
ज़मी रोयी गगन रोया रहम उनको नहीं आया,
तमाशा देखते हँसकर खड़े अब लोग सारे हैं ।
ख़ुदा कैसा सितम ढाया जगाकर प्यार को दिल में,
मिलेगा चाँद पूनम में अमा से दिन गुज़ारे हैं ।
सदी बदलीं रहीं बदली किरण इक भी नहीं झिटकी,
करे ‘अंजान’ क्या बोलो, बरसते मेघ खारे हैं ।
 

8 – ग़ज़ल

लगा दी आग अब दिल में, तमाशा देखती दुनिया,
मज़ा तुम भी कभी लूटो, है’ जैसे लूटती दुनिया ।
हमारा क्या तुम्हारा क्या, बराबर हो नहीं सकते,
हमें दिल हारना तुम पर,तुम्हें है पूजती दुनिया ।
मगर सुनलो कभी ऐसे, न औरों से किया करना,
किया जैसा हमारे सँग, हमें अब खोजती दुनिया ।
तुम्हें आया यकीं कब था, लगी दिल की नहीं जानी,
भला उस बेमुरव्वत का, जिसे दिल चाहती दुनिया ।
रहा अंजान मैं तुमको, यही ‘अंजान’ की क़िस्मत,
ख़ुदा बख़्शे तुम्हें रहमत,हमें अब छोड़ती दुनिया ।
 

– © दीपक चौबे ‘अंजान’ –

ग़ज़ल का सागर – Ghazal Ka Sagar …