Gyan Darpan Kavita : ज्ञान दर्पण कविता
– तारे सा आकर्षक नहीं, सूरज सा तेज बनो –
हां मैं एक तारा हूं
जगमग करता ,नभ में दिखता ;
सबको यूं आकर्षित करता
हां मैं एक तारा हूं।
आसमान की काली चादर
मुझसे सजकर ,इतराती;
पर मेरा अस्तित्व बड़ा ही
छोटा मुझको बतलाती।
कुछ बादल के झुरमुट के
ही पीछे मै खो जाता हूं;
और सवेरा होते ही
नीली, चादर में सो जाता हूं।
मुझे देख सब होते हर्षित
पर मैं ना आऊं किसी के काम;
सूरज को देख सके ना कोई
फिर भी है वो कीर्तिमान।
मैं खो जाऊं आसमान में
देता मुझपे कोई ना ध्यान;
वहीं अगर सूरज छिप जाए
सब हो जाते है परेशान।
सूरज की बस एक किरण से
जीवन में विश्वास मिले;
लाखों जन में जागे आशा
और सबमें उल्लास भरे।
और वहीं मैं नभ में बैठा
बना सजावट का सामान;
दूर से मुझको लोग निहारे
पर देते ना सूरज सा मान।
– © आर्तिका श्रीवास्तव –