:: जिन्दगी ::कभी मोह के भँवर मे है उलझाती और,
कभी तो विमोह पाठ है पढ़ाती जिन्दगी । कभी लगता है ठहराव भा रहा है इसे,
कभी तो समय-मूल्य समझाती जिन्दगी । कभी मुसकाती है, हँसाती दिखती है कभी,
और कभी पग-पग पे रुलाती जिन्दगी । कभी खुशियों में यह झूम-झूम गाती और,
कभी शोक-सिन्धु मे है डूब जाती जिन्दगी ।। :: प्रेम कथा – Prem Katha ::जब राधिका रानी की बात चलेगी तो,
सामने आएगी प्रेम कथा । जिस प्रेम कथा में राधिका जी ने,
कही न कभी निज पीर व्यथा । सब पीर व्यथा सहती रही किन्तु,
न तोड़ सकी वह कोई प्रथा । जिसमें बसी त्याग की भावना है,
जग मे वही अक्षय प्रेम यथा । :: मिलाप और मेल – Milap Aur Mel ::संकटो में डिगती न आसथा तभी तो मित्र,
आते प्रभु काटने को बन्ध यहां जेल में । दृढ़ं अनुराग की परम्परा है अपनी कि,
आगे हम रहते मिलाप और मेल में । आश धार भरपूर करते नहीं गुरूर,
रहते हैं समरूप पास और फेल में । भारत के बालक भी हैं नहिं किसी से काम,
गिनते हैं सिंह शावकों के दाँत खेल में ।। :: प्रेम के रंग में – Prem Rang Me ::मदहोश रहे निशिवासर ही,
नहिं ध्यान रहा खुद को जगना । सब खो रहे माया में हैं इस भाँति,
कि चाह रहे खुद को ठगना, ठगते रहते निज जीवन को,
दिखता जग जो वह है जग ना । अब छोड़ सभी छल दम्भ प्रपंच,
कि प्रेम के रंग में है रँगना ।। :: राधिका रानी – Radhika Rani ::जाइये ऊधव जी मथुरा,
ब्रज आये बने बड़े पंडित ज्ञानी । गोपियों को उपदेस दिया तो,
पड़ी उनको अपनी मुँह खानीं । बेसुध गोपियाँ क सुने नहिं प्रेम,
में कृष्ण के ऐसी दीवानी । अन्तस में बसे श्याम ही श्याम व,
श्याम में बसी राधिका रानी ।। – © अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ – |