:: श्रद्धा, आस्था और विश्वास सब कुछ हुए आप – Jeevan Par Kavita Hindi :: चित्त में समाया है तुम्हारा ही अनूप रूप,
दूसरे का ध्यान करें इसका नहीं हैं ठौर। जन्म जनमान्तरों की साधना सफल हुई,
मैं हुआ हूँ आपका न शेष रही भाग दौड़। दुनिया के हेतु होगी और वस्तुएं व लोग,
अपने लिए तो एक तुम ही हो सिरमौर, श्रद्धा, आस्था और विश्वास सब कुछ हुए आप,
आप क्या मिले कि सब बाद हुई और-और।। :: कभी धैर्य न खोना नहीं अकुला कर ::
यह माना कि टूटते हैं सपने, पर-
देख तो शाश्वत स्वप्न सजा कर। शुचि भोर सुहानी प्रतीक्षा में है,
कभी धैर्य न खोना नहीं अकुला कर। कुटिलाई न काल की जाना कोई,
रखता सबको सदा दास बना कर। अरे रात की रानी से सीख ले मीत,
विपत्तियों में भी सदा महका कर।। – ©अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ – Click here to read more… और पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें:: पर्वों की सार्थकता ::
अभी हमने दशहरा मनाया
अन्याय पर न्याय का ध्वज फहराया अन्यायी रावण का पुतला जलाया पर मन के रावण का न अन्त कर पाया । हर वर्ष सोत्साह विजय दशमी मनाते हैं, राम की जय और रावण को धिक्कारते हैं, न क्रोध पर न लोभ पर न मोह पर कभी विजयी न हो पाते हैं । कुछ दिनों बाद ही अभी दीवाली मनायेगे, पटाखे फुलझड़िया ख़ूब जलायेगे घर बाहर कोठों पर दीपो की भरमार और धूम मचायेगे, सदा से ही ऐसा करते रहे हैं और हमेशा यही करते रहेंगे कहीं भी अज्ञानता मिटा ज्ञान का दीप न जला पाते हैं बाहर तो दीपो की बाढ़ होगी किन्तु मन के अन्तस्थ में अँधेरा होगा । पर्व मनाने के उद्देश्यों की सार्थकता कहाँ? जब मन के अन्दर अज्ञानता का अँधेरा होगा सूप पीट पीट कर दीवाली में दरिद्र भगायेगे, जुआ शराब की लत न मिटा पायेगें । आखिर पर्वों की सार्थकता क्या होगी? जब ईर्ष्या द्वेष विषमता सभी यथावत् होंगे । हम त्यौहारों का ढिढोरा पीट पीट केवल मन को समझायेगे । पर अपने को कभी बदल न पाएँगे – © ओमप्रकाश त्रिपाठी – Jeevan Par Kavita Hindi |