Jeevan Par Kavita : जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली कविता
Kavita -1जीवन भर यह आस रह गई
मन में अनबुझ प्यास रह गई कोई तो होता जो मेरे अंतर्मन को पढ़ पाता कोई तो होता जो बिना कहे ही सब कुछ सुन जाता कोई तो होता जो मेरे मन का दर्द बाँट जाता कोई तो होता जो मेरे अलिखित अश्रुसिक्त पत्र के शब्दों की गहराई को आत्मसात कर के जाता काश कोई तो मेरे मौन को बिन शब्दों के सुन पाता काश कोई तो मेरे मौन को बिन शब्दों के सुन पाता इस दुनिया में आये तन्हा और तन्हा ही जाना है क्या ग़म है गर भीड़ में भी मन खुद को तन्हा पाता है। Kavita – 2हर रिश्ते को पलकों पे सजाती हैं औरतेँ
रिश्तों की नज़ाक़त को उठाती हैं औरतें भाई हो, पिता हो या पति हो या हो बेटा हर रिश्ते की कमियों को छुपाती हैं औरतेँ होती न औरतेँ तो ये,रिश्ते भी न होते हर रिश्ते की बुनियाद को थामे हैं औरतेँ मां है वो, कभी तो ,कभी बेटी कभी पत्नी हर रिश्ता निभाने में न आई कभी कमी पुरुषों को दे आदर उन्हेँ सम्मान दिलाया इंसान को भगवान बनाती हैं औरतेँ अब और क्या कहें ये सभी जान गए हैं घर चार दीवारी को बनाती हैं औरतेँ। Kavita – 3कभी आग के दरिया जैसी तपन है
कभी बर्फ के झरनों जैसी रवानी कभी शोलों जैसी धधक इसमे पाई कभी सावनी घटा बन के इतराई कभी पांव के नीचे मखमल बिछाया कभी सेज कांटों की तूने बिछाई जहां में अभी तक न समझा है कोई कहाँ कौन सा मोड़ कब तू है लाई समझना जो चाहें तुझे कैसे समझें के हर पल में देता नया कुछ दिखाई समझने के इस फेर में ही तो हमने यहां ज़िन्दगी आज अपनी लुटाई बहुत कोशिशें की हैं तब इतना समझे कि तुझको समझना ना मुमक़िन है भाई Kavita – 4ज़िन्दगी नाम नही सांस लिए जाने का
ज़िन्दगी नाम नही ऐश किए जाने का ज़िन्दगी नाम नहीं खुद के लिए जीने का ज़िन्दगी नाम है औरों के लिए जीने का ज़िन्दगी एक नियामत जो खुदा ने बख्शी ज़िन्दगी नाम है सजदों के किये जाने का ज़िन्दगी रंग हज़ारों है दिखाती सबको ज़िन्दगी नाम है हर रंग से मिल पाने का ज़िन्दगी को कभी निराश न करना ऐ दोस्त ज़िन्दगी नाम है आशा में जिए जाने का ज़िन्दगी को जो समझना है पहले खुद को समझ ज़िन्दगी कोई तमाशा नहीं खिलवाड़ नही ज़िन्दगी एक हक़ीक़त है कोई ख्वाब नही ज़िन्दगी जीते हैं सब एक दिन मार जाते हैं ज़िन्दगी नाम है मर के भी जिये जाने का ज़िन्दगी मर के वही जीते हैं जो कि औरों के ज़ख़्म सीते हैं ज़िन्दगी को भी फक्र है उन पर जो कि एहसासे दर्द पीते हैं सिर्फ अपने लिए जिये तो तुम क्या ख़ाक जिये कौन सा काम किया तुमने है इंसानों का? ज़िन्दगी नाम नहीं सांस लिए जाने का ।
– © कवयित्री रेखा शुक्ला –
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