Pakoda Remaks Par Hasya Kavita : पकौड़ा Remarks पर हास्य कविता
Pakoda Rojgar Yojna Kavita -1आने पे विनाशकाल होती विपरीत बुद्धि
मूढ़ चित्त में कभी भी ज्ञान नहीं आता है। कपटी कुचाली द्वेषधर्मियों का समुदाय
हर एक बात का बतंगड़ बनाता है। तुच्छ स्वार्थ हेतु बेचते रहे हैं जो ज़मीर
उनको पकौड़ा बेचना न रास आता है। Kavita – 2
तेवर बदल रहे हैं सियासत की चाल के,
अब रोड पे जलपान भी करना संभाल के। ठेला लगा रहे डिजाइनर दुकानदार,
दे दें कहीं न भाँग पकौड़े में डाल के। Kavita – 3
हो बेग़ैरत खुदी गिरवीं
रखा ईमान करते हो, मगर ईमानदारों को
कहा बेईमान करते हो। पकौड़ा बेचने वालों का
क्यों अपमान करते हो ? – © योगी देशबन्धु – |
